भारतेन्दु हरिश्चन्द्र |
जन्म: 1849, काशी में।
निधन: 1882
शिक्षा : क्वींस कालेज, स्वतंत्र रूप से
शिक्षार्जन।
कार्यक्षेत्र: बीस वर्ष की अवस्था मे ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाए गए।
आधुनिक
हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित।
उन्होंने 1868 मे 'कविवचनसुधा’ नामक
पत्रिका निकाली, 1876 'हरिश्चन्द्र मैगजीन` और फिर 'बालाबोधिनी` नामक पत्रिकाएं। साथ ही उनके साहित्यिक संस्थाएं भी खड़ी की।
उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 मे उन्हें 'भारतेंदु` की उपाधि प्रदान की। हिन्दी साहित्य को भारतेन्दु की देन भाषा
तथा साहित्य दोनो ही क्षेत्रो मे है। भाषा के क्षेत्र मे उन्होंने खड़ी बोली के
उस रूप को प्रतिष्ठित किया।
प्रमुख
रचनाएं
नाटक: वैदिक हिंसा हिसा न भवति (1873), भारत दुर्दशा (1875), साहित्य हरिश्चंद्र (1881) नीलदेवी (रचनाकाल 1881)। अंधेर नगरी (रचनाकाल 1881)
काव्यकृतियां: भक्तसर्वस्व, प्रेममालिका
(रचनाकाल 1871), प्रेम माधुरी (1875), प्रेम-तरंग (1877), उत्तरार्द्ध भक्तमाल(1876-77), प्रेम-प्रलाप (1877), होली (1879), मधुमुकुल (1881), राग-संग्रह (1880), वर्षा-विनोद (1880), विनय प्रेम पचासा (1881), फूलों का गुच्छा (1882), प्रेम फुलवारी (1883) और कृष्णचरित्र (1883)।
अनुवाद: बंगला से ‘विद्यासुन्दर’ नाटक, संस्कृत से ‘मुद्राराक्षस’ नाटक, और प्राकृत से ‘कपूरमंजरी’ नाटक।
निबंध संग्रह: 'भारतेन्दु ग्रन्थावली` (तीसरा
खंड) में संकलित है। उनका ‘नाटक` शीर्षक प्रसिद्ध निबंध (1885) ग्रंथावली के दूसरे खंड के परिशिष्ट में नाटकों के साथ दिया गया है।
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