शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

हिन्दी सिनेमा / अवधेश श्रीवास्तव

पुस्तक  : हिन्दी सिनेमा:सामाजिक सरोकार और               विमर्श 

लेखक : अवधेश श्रीवास्तव 

© लेखकाधीन

प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन

C-515, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्ली - 110012

मो. : 8750688053

ईमेल : newworldpublication14@gmail.com

संस्करण : 2023

मूल्य : 300 रुपये

अनुक्रम

खंड- 1

सिनेमा और सामाजिक विमर्श


सिनेमा का रोचक संसार

मूक युग से मल्टीप्लेक्स तक 

अजनबी नहीं हैं साहित्य और सिनेमा के रिश्ते

सिनेमा में समाप्त होता हास्य और उल्लास

हिन्दी सिनेमा और सामाजिक चेतना

प्यार पर परवान होते आर्टिस्ट 

फिल्मों के बदलते आयाम

भोगवादी संस्कृति का पर्याय बन रहा सिनेमा

सिनेमा में हिंसा

सार्थक सिनेमा एक युग

सिनेमा में अभिनय या अश्लीलता

कला फिल्मों का जमाना कहाँ खो गया? 

धार्मिक फिल्मों का भी एक युग रहा है 

खंड-2

कला का शिखर

भारतीय सिनेमा में सत्यजित राय का योगदान

मृणाल सेन : सामानांतर सिनेमा की आधारशिला 

गोविंद निहलानी : आक्रोश से अर्धसत्य तक

देविका रानी: हिन्दी सिनेमा की पहली महान अभिनेत्री

सुचित्रा सेन : देवदास की 'पारो'

जोहरा सहगल : एक नाम जिंदादिली का

दुर्गा खोटे : कला को समर्पित एक जीवन

सुरैया : ये कैसी अजब दास्तां हो गई

मीना कुमारी : ए ट्रेजिडी क्वीन ऑफ इंडिया

नरगिस दत्त : कला ही जीवन है

शबाना : बनाम स्मिता

वहीदा रहमान : सहज अभिनय ही एक पहचान

जया भादुड़ी : एक याद रहने वाली हंसी

राखी : दूसरी मीना कुमारी

नन्दा : ग्लैमर की दुनिया रास न आई 

गीता बाली : ये रात ये चांदनी फिर कहां

श्यामा: कभी आर कभी पार

शोभना समर्थ : दर्शकों की दिल की धड़कन

निरूपाराय : बड़े-बड़े स्टार की साधारण मां 

लीला मिश्रा : आज भी खल रही है मौसी की क

विक्टर बनर्जी : ए पैसेज टु इंडिया

ओमपुरी : फिल्मों से दर्शकों के हार्ट तक

बलराज साहनी : सामाजिक सरोकारों के अभिनेता

फारुख शेख : अभिनय की एक नयी परिभाषा

राज कपूर : जग को हंसाने रूप बदल फिर आएगा 

दिलीप कुमार : ए ट्रेजिडी किंग ऑफ इंडिया

संजीव कुमार : कला को समर्पित एक अभिनेता

शशि कपूर: विश्व सिनेमा में एक अलग पहचान 

गुलजार : मोरा गोरा रंग लै ले

जावेद अख्तर : एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

हेमंत कुमार : गंगा आए कहां से गंगा जाए कहां रे

नौशाद : शास्त्रीय संगीत में लोक संगीत का समावेश

गीता दत: वक्त ने किया क्या हंसी सितम

मन्ना डे : संगीत का एक युग

सिनेमा का रोचक संसार

दुनिया के कई देशों और भाषाओं की तरह भारतीय और हिंदी सिनेमा की कहानी भी दिलचस्प व मनोरंजक रही हैं। बेशक फिल्म मनोरंजन का माध्यम है लेकिन सिर्फ उतना भर नहीं है। वैयक्तिक तथा सामाजिक इच्छाओं, आकांक्षाओं और स्वप्नों की अभिव्यक्तियां भी उसके माध्यम से होती रही हैं। सिनेमा में चूंकि अभिनय, भाषा, संगीत, नृत्य, सिनेमेटोग्राफी, वस्त्र सज्जा, दृश्यात्मकता आदि का भी मेल और मिलन होता है इसलिए इन और इससे संबंधित कलाएं भी अपने को प्रयोगशील और नया बनाती रहती हैं। आधुनिक भारत का इतिहास भी बिना सिनेमा के लिखा नहीं जा सकता । राष्ट्रीयता और देशप्रेम के अलावा सामाजिक चेतना भी हिंदी और भारतीय सिनेमा के स्थायी सरोकार रहे हैं। इस सिनेमा जगत की चौहद्दी विस्तृत है और लगातार होती जा रही है और उसके बारे में जानने-समझने का सिलसिला भी लगातार बढ़ता जा रहा है। पत्रकार, फिल्म प्रेमी और अध्येता अवधेश श्रीवास्तव की पुस्तक हिन्दी सिनेमा : सामाजिक सरोकार और विमर्श उसी सिलसिले की एक कड़ी है। इस पुस्तक में समय समय पर और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख शामिल हैं। पर इन लेखों में एकसूत्रता भी है। कई मुद्दे तो ऐसे हैं जो हिंदी सिनेमा को बार बार मथते रहे हैं- जैसे फिल्म और साहित्य का क्या संबंध होना चाहिए, फिल्मों की सामाजिक भूमिका क्या है या कैसी होनी चाहिए, नैतिक मूल्यों और अश्लीलता जैसे वैचारिक प्रश्नों की सिनेमा में क्या भूमिका होनी चाहिए, आदि आदि। ये ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर कोई आखिरी बात नहीं कही जा सकती। हर दौर का फिल्म लेखक या समीक्षक इन सवालों से दो चार होता है और अपना तय करता है। अवधेश श्रीवास्तव भी इन सबसे टकराते और जूझते रहे हैं। उसके साक्ष्य इस पुस्तक में पढ़े जा सकते हैं।

फिल्मी दुनिया सितारों से जगमगाती रहती है। हीरो-हीरोइन से लेकर निर्देशक, संगीत-निर्देशक गायक-गायिकाएं सब अपनी चमक से फिल्म संसार को प्रकाशित और समृद्ध करते हैं। इनकी कलाएं तो सिनेमा नाम को निर्मित करती ही हैं, साथ ही इनका निजी जीवन में जन मानस को प्रभावित उद्वेलित करता रहता है। किस अभिनेत्री का किससे प्रेम हुआ, कब तक चला. क्या उसमें दरार पड़ी, क्या वे विवाह के बंधन में बंधे नहीं बंधे तो क्यों नहीं- ये सारी उत्सुकताएं भी सिनेमा जगत को खींचती रही हैं। दिलीप कुमार देव आनंद, राज कपूर, सुरैया, मधुबाला, शोभना समर्थ, राखी, नूतन, शबाना आजमी, ओम पुरी, जैसे कई अदाकारों के निजी जीवन के कई किस्से यहां मिलते हैं। और मां-मौसी की भूमिकाओं में नाम कमानेवाली निरूपाराय और लीला मिश्रा के जीवन पृष्ठ भी आपको यहां मिलेंगे। अवधेश श्रीवास्तव की भाषा आत्मीय है और उनके पास काफी जानकारियां हैं। इसलिए वे लोग भी जो अपने प्रिय फिल्मी सितारों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं उनको भी यहां कुछ नया जानने को मिल सकता है।

इसी तरह, सत्यजीत राय, मृणाल सेन, नौशाद, मन्ना डे, हेमंत कुमार, गुलजार, जावेद अख्तर जैसी शख्सियतें की खासियतों से यहां पाठक रूबरू होते हैं। ये सूची और भी लंबी है और इसे रेखांकित करते हुए यहां ये कहने का लिए बाध्य होना पड़ता है कि अवधेश जी ने सिनेमा के विविध रूपों और रंगों के अलग अलग दौर को यहां पेश किया है। मुझे लगता है, ये पुस्तक पाठकों के मन में सिनेमा के प्रति रुचि और उससे संबंधित ज्ञान में इजाफा करेगी और आज की युवा पीढ़ी, सिनेमा के अध्येताओं और सामान्य पाठकों के मन को भी छुएगी ।

-रवीन्द्र त्रिपाठी,

फिल्म समीक्षक और नाटककार

दिल्ली

परिचय : अवधेश श्रीवास्तव

जन्म : इटावा (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा : बी.एस-सी., एम.ए. (हिन्दी) प्रकाशन : 'आवाज', 'विमल मेहता सैकिंड', 'भ्रष्ट होता भविष्य', 'अपनी-अपनी दुनिया' (कहानी संग्रह) तथा आलोचना की पुस्तक 'शब्द', 'विचार और समाज का प्रकाशन | कहानियों का अंग्रेजी, उड़िया, पंजाबी, कन्नड़ भाषा के अलावा अन्य भाषाओं में अनुवाद। अब तक पांच दर्जन से अधिक कहानियों का व्यावसायिक तथा साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। सौ से अधिक लेख तथा वरिष्ठ कवि कथाकारों के साक्षात्कार | आकाशवाणी से कहानियों तथा फिल्म समीक्षाओं का प्रसारण । विभिन्न साहित्यिक तथा व्यावसायिक पत्र-पत्रिकाओं में फिल्मों पर रचनात्मक लेखन का प्रकाशन । दूरदर्शन के लिए डॉक्यूमेंट्री के लिए पटकथा लेखन।

*'स्वतंत्र भारत' कहानी प्रतियोगिता के अंतर्गत पहली लिखित कहानी 'बंद पलकों के अंधेरे' पुरस्कृत |

*'कथा वर्ष 79' (सम्पादक देवेश ठाकुर) के अंतर्गत 1978 में 'रविवार' (सम्पादक सुरेन्द्र प्रताप सिंह) प्रकाशित कहानी 'दरार' का वर्ष की श्रेष्ठ कहानी में चयन व प्रकाशन । 

*कहानी 'विमल मेहता सैकिंड' का 'कथा कोलाज' के अंतर्गत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में और हिन्दी अकादमी द्वारा अशरफ अली के निर्देशन में कहानी का नाट्य मंचन ।

संप्रति : 1985 से 2007 तक टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 'नवभारत टाइम्स' के लिए रिर्पोट्स व फीचर लेखन। 2007 से 2016 तक प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह में फीचर लेखन, संपादन कार्य व पुस्तक प्रकाशन प्रबंधन। पूर्व सदस्य, कार्यकारिणी समिति, हिन्दी अकादमी, दिल्ली, कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग, दिल्ली सरकार |

सम्पर्क : प्लाट नं. ए-212, दूसरी मंजिल, ब्लॉक ए, सेक्टर 8, द्वारका, दिल्ली-110077

मो.: 9582096038, 7599242988

Email : avdheshsrivastava444@gmail.com\avdhesh.srivastava@yahoo.com

इस पुस्तक का अमेजन लिंक:

https://www.amazon.in/AVDHESH-SRIVASTAVA/dp/8196086075/ref=mp_s_a_1_76?crid=12X5UOELH9XES&keywords=newworld+publication+opc&qid=1674912406&sprefix=%2Caps%2C984&sr=8-76

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